हानि लाभ

        

हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ

        जब तुलसीदास यह कहते हैं कि हानि और लाभ, जीवन और मृत्यु, यश और अपयश या मान और अपमान विधाता के हाथ में है तो क्या आप इस उद्धरण से उनकी भावना को समझ सके ?  ऐसा कहकर वे व्यापक रूप से यह बताना चाहते हैं कि मनुष्य द्वारा किये गये किसी कर्म या कर्मों का फल मनुष्य स्वयं निर्धारित नहीं करता है वरन् कर्मफल किसी अज्ञात सत्ता द्वारा हमें प्राप्त कराया जाता है। सांसारिक व्यापार कुछ सांसारिक नियमों के अंतर्गत किये जाते हैं परंतु इनमें हानि या लाभ का बंटवारा हमारे पूर्व में कृत कर्मों से भी प्रभावित होता है जिसके कारण हमारे लिये यह समझना कठिन हो जाता है कि हमें हानि क्यों हुई, अपयश क्यों मिला या मृत्यु क्यों हुई ?